Monday, December 3, 2018

अपने बच्चों को इसके बारे में कब बताना चाहिए, जिसे वो समझ सके इसके बारे में..पूरी जानकरी पढ़िए यंहा से..

अपने बच्चों को इसके बारे में कब बताना चाहिए, जिसे वो समझ सके इसके बारे में..
Third Gender: बच्चों को कितना जरूरी है इसके बारे में बताना और कब बताना...पाठ्यक्रमों के जरिए यह काम किया जाना चाहिए कि सिर्फ दो जेंडर नहीं है, तीसरा जेंडर भी है.
समलैंगिकता को अपराध माना जाए या नहीं, इस मसले पर हमारा समाज दो हिस्सों में बंटा है. समलैंगिकों को समाज में तीसरे जेंडर के रूप में कानूनी मान्यता भले मिल गई हो, लेकिन समाज में स्वीकार्यता अभी तक नहीं मिली है. समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर निकालने के लिए 'नाज फाउंडेशन' के साथ मिलकर एनजीओ 'हमसफर ट्रस्ट' ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है, जिस पर फैसला अभी सुरक्षित रख लिया गया है. एनजीओ का कहना है कि यदि न्यायालय से न्याय नहीं मिलता है तो इस लड़ाई को आगे बढ़ाने के और विकल्प तलाशे जाएंगे.


क्या है धारा 377
'हमसफर ट्रस्ट' के प्रोग्राम मैनेजर यशविंदर सिंह का कहना है, "दरअसल धारा 377 उन कानूनों में से एक है, जिसे ब्रिटिश सरकार ने तैयार किया था. मुझे लगता है कि धारा 377 को समाज सही तरीके से समझ नहीं पाया. यह धारा सिर्फ एलजीबीटी समुदाय से जुड़ी है, यह सच नहीं है. इस दिशा में जागरूकता फैलाने की जरूरत है कि किस तरह ऐसे सख्त कानूनों से मानवाधिकारों का हनन हो रहा है. संविधान की धारा 14,15,19 और 21 में मौलिक अधिकारों का हवाला दिया गया है, जिसका धारा 377 के तहत हनन हो रहा है."

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कितने लोग हैं समलैंगिकों
यशविंदर ने बताया कि इस तरह के कानूनों से निपटने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है. नेता वोट बैंक के चक्कर में इस समुदाय को नजरअंदाज कर रहे हैं. यदि हम सिर्फ समलैंगिकों की आबादी का ही अनुमान लगाएं तो सुप्रीम कोर्ट की सुनवाइयों के अनुरूप यह लगभग पांच फीसदी है. इस तरह से 120 करोड़ भारतीयों में इस पांच फीसदी आबादी के बहुत मायने हैं.


प्राकृतिक है या नहीं
उन्होंने कहा कि समलैंगिकता को लेकर कुछ लोगों के निजी विचार हो सकते हैं, लेकिन मैं उनसे आग्रह करता हूं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन, आईएमए और अन्य संबद्ध संस्थाओं द्वारा उल्लिखित दिशानिर्देशों का पालन करें.

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भारत की सभ्यता
उन्होंने कहा, "भारत ऐसी भूमि रही है, जिसकी सभ्यता ने हमेशा कामुकता और विभिन्नता का जश्न मनाया है. मौजूदा सरकार जरूर इन पुराने पड़ चुके कानूनों की समीक्षा कर रही है, लेकिन मैं सरकार से आग्रह करता हूं कि 377 जैसी धाराओं को तुरंत हटाया जाए."

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क्या हैं कानूनी पहलू 
एलजीबीटी समुदाय को समाज में सम्मान मिलने के सवाल के बारे में पूछने पर वह कहते हैं, "मैं मानता हूं कि कानूनी रूप से मान्यता देना पहला कदम है. हालांकि मैं सहमत हूं कि सामाजिक बदलाव आने में बहुत लंबा समय लगेगा. देश में महिलाओं और पुरुषों को कागजों पर बराबर अधिकार दिए गए हैं, लेकिन हकीकत में महिलाओं को आज भी पुरुषों के बराबर समान हक नहीं मिले हैं, तब तो समलैंगिकों के अधिकारों के लिए अभी लंबा रास्त तय करना पड़ेगा. इन्हें समाज की मुख्यधारा में लाए जाने की जरूरत है. इनके लिए शिक्षा एवं रोजगार की व्यवस्था करनी होगी, अन्यथा या तो ये बधाई देने वाली टोली में दिखाई देंगी या भीख और वेश्यावृत्ति

  के चंगुल में फंसे रहेंगे."
जागरुकता फैलानी की जरूरत
यशविंदर कहते हैं, "एलजीबीटी के प्रति जागरूकता फैलाने का पहला कदम है कि स्कूली बच्चों को इनके बारे में जानकारी दी जाए. स्कूल के पाठ्यक्रमों के जरिए यह काम किया जाना चाहिए कि सिर्फ दो जेंडर नहीं है, तीसरा जेंडर भी है. दूसरा कदम यह होगा कि इस तरह के कानून लाए जाने की जरूरत है, जिससे इन्हें समाज की मुख्यधारा में जोड़ा जा सके. इनके लिए रोजगार की व्यवस्था किए जाने की जरूरत है.(Source & crdit goes to https://doctor.ndtv.com please visit for more update) यंहा से पढ़े पूरी Health-Tips , और दिन बहर की बड़ी खबर की जानकारी के लिए यंहा से विजिट करे: Home , आप यंहा भि विजिट कर सकते है (Private Job , Government Job, Health Tips, Home) इस official site को अभी तुरंत ही Follow करे: BHARTI PEOPLE . Thank you visit again .

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